बहुला चौथ व्रत कथा | बहुला चौथ व्रत पूजा विधि

बहुला चौथ 2022, व्रत पूजा विधि, महत्व  कथा (Bahula Chauth Vrat Katha, Mahatwa, Puja Vidhi in Hindi)

बहुला चौथ 2022: सावन महीने में अनेकों त्यौहार आते है, जिनका पुजन हिन्दू समाज विधि विधान से करता है. सावन में ही एक त्यौहार आता है, बहुला चौथ या चतुर्थी इसे गुजरात में बोल चौथ के नाम से जानते है, जबकि मध्यप्रदेश में इसे बहुला चौथ कहते है. चतुर्थी तिथि को वैसे गणेश जी का दिन माना जाता है, लेकिन ये चतुर्थी कृष्ण चतुर्थी के नाम से व्यख्यात है. यह त्यौहार मुख्यतः किसान लोगों के द्वारा किया जाता है, इस दिन वे अपने पशु, मुख्यरूप से गाय, बैल की पूजा करते है. किसानों के जीवन में इन पशुओं का भी मुख्य स्थान होता है, उनकी वजह से वे सफल खेती कर पाते है, तो गायों और बछड़ों के कल्याण के लिए ये दिन मनाया जाता है.

बहुला चौथ का व्रत भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इस व्रत को माताएँ अपने पुत्रों कर रक्षा हेतु करती हैं। इस दिन गेहूँ एवं चावल से निर्मित वस्तुएँ वर्जित हैं। गाय तथा सिंह की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजन करने का विधान प्रचलित है। इस व्रत को गौ पूजा व्रत भी कहा जाता है।


बहुला चौथ कब मनाया जाता है? (Bahula Chauth 2022 Date) 

बहुला चौथ सावन माह के कृष्ण पक्ष के चौथे दिन मनाया जाता है, यह नागपंचमी के एक दिन पहले आती है. इस साल  में बहुला चतुर्थी 15 अगस्त 2022 को है ।

बहुला चतुर्थी मुहूर्त (Bahula Chaturthi Muhurat) –

चतुर्थी शुरू 14 अगस्त रात 22:40 से
चतुर्थी ख़त्म 15 अगस्त रात 21.00 तक
बहुला चौथ पूजा का समय शाम को 6.40 से 7.06



बहुला चौथ व्रत का महत्त्व (Bahula Chauth Vrat Ka Mahatwa)

बहुला चौथ मुख्य रूप से गुजरात राज्य में कृषक समुदाय द्वारा मनाया जाता है। बहुला चौथ का त्यौहार भगवान कृष्ण के अनुयायी मुख्य रूप से मनाते है. इस दिन गाय, बछड़े की पूजा की जाती है, और कृष्ण जी के जीवन में गायों का बहुत महत्व था, वे खुद एक गाय चराने वाले थे, जो गौ की माता की तरह पूजते थे.



बहुला चौथ व्रत कथा (Bahula Chauth Vrat Story in Hindi)

बहुला चतुर्थी व्रत से संबंधित एक बड़ी ही रोचक कथा प्रचलित है। जब भगवान विष्णु का कृष्ण रूप में अवतार हुआ तब इनकी लीला में शामिल होने के लिए देवी-देवताओं ने भी गोप-गोपियों का रूप लेकर अवतार लिया। कामधेनु नाम की गाय के मन में भी कृष्ण की सेवा का विचार आया और अपने अंश से बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा की गौशाला में आ गई।


भगवान श्रीकृष्ण का बहुला गाय से बड़ा स्नेह था। एक बार श्रीकृष्ण के मन में बहुला की परीक्षा लेने का विचार आया। जब बहुला वन में चर रही थी तब भगवान सिंह रूप में प्रकट हो गए। मौत बनकर सामने खड़े सिंह को देखकर बहुला भयभीत हो गई। लेकिन हिम्मत करके सिंह से बोली, ‘हे वनराज मेरा बछड़ा भूखा है। बछड़े को दूध पिलाकर मैं आपका आहार बनने वापस आ जाऊंगी।’
सिंह ने कहा कि सामने आए आहार को कैसे जाने दूं, तुम वापस नहीं आई तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा। बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेकर कहा कि मैं अवश्य वापस आऊंगी। बहुला की शपथ से प्रभावित होकर सिंह बने श्रीकृष्ण ने बहुला को जाने दिया। बहुला अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस वन में आ गई।



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बहुला की सत्यनिष्ठा देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर कहा कि ‘हे बहुला, तुम परीक्षा में सफल हुई। अब से भाद्रपद चतुर्थी के दिन गौ-माता के रूप में तुम्हारी पूजा होगी। तुम्हारी पूजा करने वाले को धन और संतान का सुख मिलेगा।’


बहुला चौथ व्रत पूजा विधि (Bahula Vrat Ki  Vidhi) 

  • इस दिन पूरा दिन का व्रत होता है, जो शाम को पूजा के बाद खोला जाता है.
  • इस दिन मिट्टी से गाय एवं बछड़ा बनाया जाता है, कुछ लोग सोने एवं चांदी के बनवाकर उसकी पूजा करते है.
  • शाम को सूर्यास्त के पश्चात् इन गाय, बछड़े की पूजा की जाती है, साथ ही गणेश एवं कृष्ण जी की पूजा की जाती है.
  • कुछ लोग ज्वार एवं बाजरा से बनी वस्तु भोग में चढ़ाते और बाद में उसे ही ग्रहण करते है.
  • पूजा के बाद बहुला चौथ की कथा को शांति से सुनना चाहिए.
  • इस दिन दूध और उससे बनी चीजें जैसे चाय, काफी, दही, मिठाइयाँ खाना बिलकुल माना होता है.
  • कहते है जो यह व्रत रखता है, उसे संकट से आजादी मिलती है, साथ ही उसे संतान की प्राप्ति होती है. इस व्रत से धन ऐश्वर्य मिलता है.
  • पूजा अर्चना के बाद, मिट्टी से बने गाय बछड़े के जोड़े को किसी नदी या तालाब में सिरा दिया जाता है.



बहुला चौथ व्रत मनाने का तरीका (Bahula Chauth Manaane Ka Tarika)

गुजरात में बोल चौथ के दिन व्रत रखा जाता है, किसान समुदाय में घर का हर एक सदस्य इस व्रत को रखता है, और पशुओं की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करता है.  मध्यप्रदेश में बहुला चौथ थोडा अलग तरीके से मनाते है. इस दिन घर की औरतें ही व्रत रखती है, और संतान प्राप्ति और संकट से निदान के लिए प्रार्थना करती है. औरतें अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए भी ये व्रत रखती है, साथ ही पुरे परिवार की समृद्धि के लिए प्रार्थना करती है.

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