क्या आप जानते हैं की मुहर्रम क्यों मनाया जाता है? अगर नहीं तो आप हमारे इस लेख को शुरू से अंत तक जरूर पढे इसमे हमने मुस्लिमों के सबसे प्रमुख मुहर्रम के बारे मे सारी जानकारी दिए हुए है।
जिस तरह हिन्दू धर्म में दिवाली व होली, जैन धर्म में संवत्सरी और बौद्ध धर्म में वेसाक का महत्व हैं उसी तरह से मुस्लिम धर्म में भी कुछ त्यौहार जैसे की ईद और मुहर्रम का महत्व हैं. आप सभी ने मुहर्रम नाम तो जरूर सुना होगा जिसे हम आमतौर पर ताजिया के नाम से जानते है। लेकिन क्या आप जानते हैं की मुहर्रम क्या हैं और मुहर्रम क्यों मनाया जाता हैं? आज के इस लेख में हम इसी बारे में बात करेंगे.
मुहर्रम मुस्लिमो का सबसे प्रमुख त्यौहार हैं। इसे मुहर्रम अथवा मोहर्रम भी कहते हैं। इसे एक शहादत का त्यौहार माना जाता हैं, इसका महत्व इस्लामिक धर्म में बहुत अधिक होता हैं। इस्लामिक कैलंडर के अनुसार यह साल का पहला महिना होता हैं। पैग़म्बर मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन एवं उनके साथियों की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। मुहर्रम एक महीना है जिसमें दस दिन इमाम, हुसैन के शोक में मनाये जाते हैं। इसी महीने में मुसलमानों के आदरणीय पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब मुस्तफा सल्लाहों अलैह व आलही वसल्लम ने पवित्र मक्का से पवित्र नगर मदीना में हिज़रत किया था। मुहर्रम के दिन कई मुस्लिम उपवास करते हैं।

मुहर्रम क्या हैं ?
‘मोहर्रम’ इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम है। इसी महीने से इस्लाम का नया साल शुरू होता है। इस महिने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा (Day Of Ashura) कहा जाता है, इसी दिन को अंग्रेजी कैलेंडर में मोहर्रम कहा गया है।
मुहर्रम शब्द का अर्थ क्या है?
मुहर्रम शब्द का अर्थ ‘प्रतिबंधित, वर्जित, निषेध या फिर गैरकानूनी‘ होता हैं। आसान भाषा में कहा जाए तो मुहर्रम का अर्थ ‘जो कार्य मना किया गया हैं। मुहर्रम को रमजान के महीने के बाद सबसे पवित्र महीना माना जाता है.
मुहर्रम कब मनाया जाता है?
मुहर्रम इस्लामिक कलैण्डर के अनुसार मनाया जाता हैं. मुहर्रम को इस्लामिक कलैण्डर का पहला महीना माना जाता हैं. जिस तरह से दीवाली सनातन धर्म के कैलेंडर के अनुसार मनाई जाती है उसी तरह से मुहर्रम भी इस्लामी धर्म के कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है. यही कारण है कि जिस तरह से दिवाली की अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से कोई निश्चित दिनांक नहीं होती उसी तरह से मोहर्रम की भी कोई दिनांक नहीं होती.
मुहर्रम क्यों मनाया जाता है ?
इस्लाम में जो मान्यताएं हैं उनके अनुसार इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था, यजीज खुद को खलीफा मानता था. हालांकि उसको अल्लाह पर भरोसा नहीं था औऱ वो चाहत रखता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमें में शामिल हो जाएं. लेकिन हुसैन को ये मंजूर नहीं था औऱ उन्होंने यजीद के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार औऱ दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. जिस महीने हुसैन औऱ उनके परिवार को शहीद किया गाय था वह मुहर्रम का ही महीना था।
मुहर्रम का महत्व
मुहर्रम किसी खुशी का त्योहार नहीं है, बल्कि ये एक गम का त्योहार है, देखा जाये तो मुहर्रम इस्लामिक धर्म की रक्षा करने वाले हजरत हुसैन अली की शहादत को याद करने का समय होता है. मुस्लिमों के लिए यह समर्पण का त्यौहार होता है. इस महीने बाद शोक मनाते हैं और कई मुसलमान इस महीने रोजे भी रखते हैं. कहा जाता है कि यजीद ने मुहर्रम के दसवे दिन हजरत हुसैन अली को और उनके परिवार वाले को मौत के घाट उतार दिया था.
हजरत हुसैन अली ने यजीद की बादशाहत स्वीकार नहीं की और अंत तक अपने धर्म के लिए लड़ते रहे. हुसैन का लक्ष्य स्वयं का समर्थन करते हुए भी धर्म को जिंदा रखना था. यह अधर्म पर धर्म की जीत थी. अधर्म पर धर्म की जीत के लिए जिस तरह से हिंदुओं के लिए दशहरा मायने रखता है उसी तरह से मुस्लिमों के लिए मुहर्रम मायने रखता है.
मुहर्रम का इतिहास
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार पैंगबर मोहम्मद के पोते हजरत इमाम हुसैन को मुहर्रम के महीने में कर्बला की जंग में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. कर्बला की जंग हजरत इमाम हुसैन और बादशाह यजीद की सेना के बीच हुई थी. मान्यताओं के मुताबिक मुहर्रम के महीने में दसवें दिन ही इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी. इसलिए मुहर्रम महीने के 10वें दिन मुहर्रम मनाया जाता है.
मुहर्रम कैसे मनाया जाता हैं?
मोहर्रम का महीना मुसलमानों के लिए काफी पवित्र और खास होता है. मोहर्रम के नौवें और दसवें दिन काफी सारे मुसलमान रोजा रखते हैं. मोहर्रम के रोजे मुसलमानों के लिए अनिवार्य नहीं होते लेकिन हजरत मोहम्मद के मित्र इब्ने अब्बास के मुताबिक जो मुस्लिम मोहर्रम का रोजा रखता है उसके2 सालो के गुनाह माफ हो जाते हैं. मोहर्रम महीने की दसवीं तारीख को निकाला जाने वाले ताजिया जुलूस भी काफी लोकप्रिय है.
आज बड़े ही धूमधाम से निकाला जाता है और इसकी तैयारियां महीनों पहले ही शुरू हो जाती है. ताजिया लकड़ी और कपड़ों से गुंबदनुमा बनाया जाता हैं. इसके अंदर शहीद इमाम हुसैन की कब्र का आर्टिफिशियल अवतार बनाया जाता है. इसे झांकी की तरह सजाया जाता है और बड़े धूमधाम से निकाला जाता है.
इस जुलूस में इमाम हुसैन की कब्र को उतना ही सम्मान दिया जाता है जितना कि एक शहीद की कब्र को दिया जाता हैं. कुछ जगहों पर निकलने वाली ताजिया बड़ी ही लोकप्रिय है जिसे देखने के लिए देश विदेश से भी लोग आते हैं।