सरदार उधम सिंह की जीवनी, शिक्षा, माइकल ओ’ड्वायर की हत्या, मृत्यु और आधारित फिल्मे | Udham Singh Biography, Education, Death and [Biopic Movie, Vicky Kaushal, Cast
उधम सिंह एक भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे. अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग में नरसंहार किया गया था. जिसके प्रतिशोध स्वरुप उधम सिंह ने पंजाब के पूर्व उपराज्यपाल माइकल ओ ड्वायर की हत्या कर दी. जिसके बाद वह लोकप्रिय हो गए थे. उधम सिंह जलियांवाला बाग कांड के प्रत्यक्षदर्शी थे. उनके सामने उन्होंने सैकड़ों लोगों की शव यात्रा को जाते हुए देखा था. जिससे बाद उनके मन पर गहरा धक्का और आक्रोश पैदा हुआ और उन्होंने अपने सैकड़ों निर्दोष देशवासियों की मौत का बदला लेने की ठान ली. हत्या की घटना के बाद उन्हें तुरंत गिरफ्तार किया गया. जिसके बाद उन्हें ब्रिटेन की एक जेल में रखा गया और जुलाई 1940 में लंदन की पेंटोनविले जेल में उधम सिंह को फाँसी दे दी गई. बहादुरी के इस कार्य के लिए उन्हें शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह नाम से जाना पहचान जाता हैं
Sardar Udham Singh Biography in Hindi | सरदार उधम सिंह का जीवनी
पूरा नाम (Full Name) | शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह |
असल नाम (Real Name) | शेरसिंह |
जन्म तिथि (Birth Date) | 26 दिसंबर 1899 |
जन्म स्थान (Birth Place) | सुनाम, संगरूर जिला, पंजाब |
पिता का नाम (Father Name) | टहल सिंह कंबोज |
माता का नाम (Mother Name) | नारायण कौर (या नरेन कौर) |
शिक्षा (Education) | मैट्रिक पास |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | अविवाहित |
वंश (Genus) | कंबोज |
मृत्यु (Death) | 31 जुलाई 1940 |
उधम सिंह का प्रारंभिक जीवन एवं पारिवारिक जानकारी
उधम सिंह का जन्म शेर सिंह के रूप में 26 दिसंबर 1899 को तत्कालीन रियासत पटियाला (वर्तमान में संगरूर जिला, पंजाब) के ग्राम सुनाम में एक कंबोज परिवार में हुआ था. उनके पिता टहल सिंह कंबोज उस समय पड़ोस के एक गांव उपली में एक रेलवे क्रॉसिंग पर एक चौकीदार के रूप में कार्यरत थे. शेर सिंह और उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह ने कम उम्र में अपने माता-पिता को खो दिया.
1901 में उनकी मां की मृत्यु हो गई, और उनके पिता ने 1907 तक पालन किया. ऐसी दुखद परिस्थिति में दोनों भाइयों को अमृतसर के खालसा अनाथालय में आगे का जीवन व्यतीत करने के लिए और शिक्षा दीक्षा लेने के लिए इस अनाथालय में उनको शरण लेनी पड़ी थी. परंतु दुर्भाग्यवश उधम सिंह के भाई का भी साथ ज्यादा समय तक नहीं रहा उनकी भाई की मृत्यु 1917 में ही हो गई थी. अब उधम सिंह पंजाब में तीव्र राजनीति में मची उथल-पुथल के बीच अकेले रह गए थे. उधम सिंह हो रही इन सभी गतिविधियों से अच्छी तरह से रूबरू थे. उधम सिंह ने 1918 में अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी कर ली. इसके बाद उन्होंने 1919 में खालसा अनाथालय को छोड़ दिया.
उधम सिंह शहीद भगत सिंह के विचारों से प्रेरित
उधम सिंह भगत सिंह के कार्यों और उनके क्रन्तिकारी समूह से बहुत ही प्रभावित हुए थे। 1935 जब वे कश्मीर गए थे, उन्हें भगत सिंह के तस्वीर के साथ पकड़ा गया था। उन्हें बिना किसी अपराध के भगत सिंह का सहयोगी मान लिया गया और भगत सिंह को उनका गुरु। उधम सिंह को देश भक्ति गीत गाना बहुत ही अच्छा लगता था और वे राम प्रसाद बिस्मिल के गीतों के बहुत शौक़ीन थे जो क्रांतिकारियों के एक महान कवी थे।
उधम सिंह को जेल
इस घटना के घुस्से और दुःख की आग के कारण उधम सिंह ने बदला लेने का सोचा। जल्दी ही उन्होंने भारत छोड़ा और वे अमरीका गए। उन्होंने 1920 के शुरुवात में Babbar Akali Movement के बारे में जाना और वे वापस भारत लौट आये। वो छुपा कर एक पिस्तौल ले कर आये थे जिसके कारण पकडे जाने पर अमृतसर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। इसके कारण उन्हें 4 साल की जेल हुई बिना लाइसेंस पिस्तौल रखने के कारण।
जेल से छुटने के बाद इसके बाद वे अपने स्थाई निवास सुनाम Sunam में रहने के लिए आये पर वहां के व्रिटिश पुलिस वालों ने उन्हें परेशां किया जिसके कारण वे अमृतसर चले गए। अमृतसर में उधम सिंह ने एक दुकान खोला जिसमें एक पेंटर का बोर्ड लगाया और राम मुहम्मद सिंह आजाद के नाम से रहने लगे Ram Mohammad Singh Azad. उधम सिंह ने यह नाम कुछ इस तरीके से चुना था की इसमें सभी धर्मों के नाम मौजूद थे।
माइकल ओ’ड्वायर की गोली मारकर हत्या
उधमसिंह 13 अप्रैल 1999 को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।
उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।
उधम सिंह का सम्मान और विरासत –
- सिखों के हथियार जैसे :- चाकू, डायरी और शूटिंग के दौरान उपयोग की गई गोलियों को स्कॉटलैंड यार्ड में ब्लैक म्यूजियम में उनके सम्मान के रूप में रखा गया है.
- राजस्थान के अनूपगढ़ में शहीद उधम सिंह के नाम पर चौकी भी मौजूद है.
- अमृतसर के जलिया वाले बाग के नजदीक में सिंह लोगों को समर्पित एक म्यूजियम भी बनाया गया है.
- उधम सिंह नगर जो झारखंड में मौजूद है. इस जिले के नाम को भी उन्हीं के नाम से प्रेरित होकर रखा गया था.
- उनकी पुण्यतिथि के दिन पंजाब और हरियाणा में सार्वजनिक अवकाश रहता है.
उधम सिंह जी के द्वारा दिए गए बलिदान को कई भारतीय फिल्मों में फिल्माया गया है, जो इस प्रकार हैं:-
- जलियांवाला बाग़ (1977)
- शहीद उधम सिंह (1977)
- शहीद उधम सिंह (2000)
क्रांतिकारी राजनीती
इसके बाद उधम सिंह क्रांतिकारी राजनीती में शामिल हो गए और भगत सिंह एवं उनके क्रांतिकारी समूह का उनपर काफी प्रभाव पड़ा। 1924 में सिंह ग़दर पार्टी में शामिल हो गये और विदेशो में जमे भारतीयों को जमा करने लगे।
1927 में भगत सिंह के आदेश पर वे भारत वापिस आ गए और अपने साथ वे 25 सहयोगी, रिवाल्वर और गोलाबारूद भी ले आए। इसके तुरंत बाद उन्हें बिना लाइसेंस के हथियार रखने के लिए गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उनपर मुकदमा चलाया गया और उन्हें पाँच साल की सजा देकर जेल भेजा गया।
1931 में जेल से रिहा होने के बाद, सिंह के अभियान पर पंजाब पुलिस निरंतर निगरानी रख रही थी। इसके बाद वे कश्मीर चले गये और वहाँ वे पुलिस से बचने में सफल रहे और भागकर जर्मनी चले गए।
1934 में सिंह लन्दन पहुचे और वहाँ उन्होंने माइकल ओ’डायर की हत्या करने की योजना बनायीं थी।
उधम सिंह की शहादत
4 जून 1940 को ऊधम सिंह को डायर की हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई, 1940 को उन्हें ‘पेंटनविले जेल’ में फाँसी दे दी गयी। इस प्रकार यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अपनी शहादत देकर अमर हो गया। 31 जुलाई, 1974 को ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए थे। ऊधम सिंह की अस्थियाँ सम्मान सहित भारत लायी गईं। उनके गाँव में उनकी समाधि बनी हुई है।
विक्की कौशल स्टारर फिल्म सरदार उधम सिंह (2021)
Sardar Udham Singh Movie Story In Hindi
सरदार उधम सिंह एक आगामी भारतीय हिंदी भाषा की जीवनी फिल्म है, जो शूजीत सरकार द्वारा निर्देशित है, जिसे रॉनी लाहिड़ी और शील कुमार द्वारा निर्मित और रितेश शाह और शुभेंदु भट्टाचार्य द्वारा राईन सन फिल्म्स और केनो वर्क्स के बैनर तले लिखा गया है. इस फिल्म में विक्की कौशल ने सरदार उधम सिंह जी का किरदार निभाया है. इस फिल्म के माध्यम से सरदार उधम सिंह जी के जीवन में घटित घटनाओं को और उनके उद्देश्य को दर्शकों को दिखाने और समझाने की कोशिश की गई है. इस फिल्म को लगभग 120 करोड़ों रुपए की लागत में बनाया जा रहा है. 16 अक्टूबर 2021 को यह मूवी रिलीज हो रही है