Tulsi Gowda Biography In Hindi | तुलसी गौड़ा की जीवनी

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तुलसी का जन्म कर्नाटक के हलक्की जनजाति के एक परिवार में हुआ था। बचपन में उनके पिता चल बसे थे और उन्होंने छोटी उम्र से मां और बहनों के साथ काम करना शुरू कर दिया था। इसकी वजह से वे कभी स्कूल नहीं जा पाईं और पढ़ना-लिखना नहीं सीख पाईं। 11 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई पर उनके पति भी ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहे। अपनी जिंदगी के दुख और अकेलेपन को दूर करने के लिए ही तुलसी ने पेड़-पौधों का ख्याल रखना शुरू किया। वनस्पति संरक्षण में उनकी दिलचस्पी बढ़ी और वे राज्य के वनीकरण योजना में कार्यकर्ता के तौर पर शामिल हो गईं। साल 2006 में उन्हें वन विभाग में वृक्षारोपक की नौकरी मिली और चौदह साल के कार्यकाल के बाद वे आज सेवानिवृत्त हैं। इस दौरान उन्होंने अनगिनत पेड़ लगाए हैं और जैविक विविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

Tulsi Gowda Biography In Hindi

नाम  तुलसी गौड़ा
जन्म  सन् 1944
स्थान  होन्नाली गांव
राज्य  कर्नाटक
पेशा  पर्यावरणविद्
सम्मान  पद्मा श्री 2021

 

पर्यावरण की सुरक्षा में उनके योगदान के लिए 8 नवंबर को कर्नाटक की 77 वर्षीय पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा को पद्म श्री पुरस्कार प्रदान किया गया। एक पर्यावरणविद् के रूप में उनकी कहानी कई वर्षों में कई लोगों के लिए प्रेरणा साबित हुई है।

77 साल की तुलसी गिनकर नहीं बता सकती कि पूरी जिंदगी में उन्होंने कितने पेड़ लगाए। 40 हजार का अंदाजा लगाने वाली तुलसी ने करीब एक लाख से भी ज्यादा पेड़ लगाए हैं। अपनी पूरी जिंदगी पेड़ों को समर्पित करने वाली तुलसी को पेड़-पौधों की गजब की जानकारी है। जिसकी वजह से उन्हें जंगल का इनसाइक्लोपीडिया भी कहा जाता है। स्कूल में शिक्षित न होने के बावजूद वनों और पेड़-पौधों पर तुलसी का ज्ञान किसी पर्यावरणविद या वैज्ञानिक से कम नहीं है। उन्हें हर तरह के पौधों के फायदे के बारे में पता है। किस पौधे को कितना पानी देना है, किस तरह की मिट्टी में कौन-से पेड़-पौधे उगते हैं, यह सब उनकी उंगलियों पर है। आज भी तुलसी पेड़ों को लगाने के काम में सक्रिय हैं। साथ ही वो बच्चों को सिखाती हैं कि पेड़ हमारे जीवन के लिए कितना जरूरी है। उनके बिना ये धरती रहने लायक नहीं रह जाएगी। तुलसी को पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। तुलसी जैसे पर्यावरणविद् की वजह से ही आज धरती पर हरियाली है। लेकिन इन जैसी कोशिश हर किसी को करने की जरूरत है क्योंकि अकेले इनकी कोशिश काफी नही है पर्यावरण बचाने के लिए।

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